कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग
दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में नाथद्वारों से करीब २५ मील उत्तर की ओर अरावली की एक ऊँची श्रेणी पर कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई ३५६८ फुट है. इस किले का निर्माण सन् १४५८ (विक्रम संवत् १५१५) में महाराणा कुंभा ने कराया था अतः इसे कुंभलमेर (कुभलमरु) या कुंभलगढ़ का किला कहते हैं .
कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा मुख्य गढ़ है,जो अरावली पर्वत पर स्थित है.कला और स्थापत्य की दृष्टि से विश्व के किलों में कुंभलगढ़ का किला अजेय और अप्रतिम माना जाता है.सूत्रधार मंडन ने इसकी परिकल्पना की और करीब सात सौ शिल्पियों ने दिन—रात अरावली के ख्यात शिखर पर किले को आकार दिया था.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग अनेक कारणों से प्रसिद्ध है.
इसी दुर्ग में ऐतिहासिक पुरूष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.
इस अजेय दुर्ग की दीवारें इतनी चौडी है कि इस पर कई घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाईना) के बाद संभवत: यह दुनियाँ में दूसरी सबसे चौड़ी दीवार वाला दुर्ग है.
भारत में सब से लंबी दीवार इसी दुर्ग की है.
इस दुर्ग की खासियत यह है कि यह दूर से नज़र आता है मगर नजदीक पहुंचने पर भी इसे देखना आसान नही हैं. इसी खूबी के कारण एक बार छोड़ इस दुर्ग पर कभी कोई विजय हासिल नहीं कर पाया.
सामरिक रणनीति के तहत राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र की सीमाओं पर निॢमत ११०० मीटर की ऊंचाई और १३ अन्य पहाडि़यों की चोटी से घिरा यह अनूठा दुर्ग हैं.मेवाड़ की सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा करने के लिए मेवाड़ अंचल से बनाये गये ८४ छोटे-बड़े दुर्ग में से ३२ का निर्माण एवं डिजाईन महाराणा कुम्भा द्वारा करवाई गई थी.यह 12 किलोमीटर तक फैला हुआ है और कई मंदिर, महल व बाग इसमें स्थित है.
बादल महल से आस-पास के देहातों का दृश्य दिखाई देता है. गढ़ में केवल सात द्वारों केलवाड़ा से ही पहुंचा जा सकता है.विजय पोल के पास की समतल भूमि पर हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर बने हैं.
इस शिवलिंग की ऊँचाई देखीये.राणा कुम्भा इसी शिवलिंग की पूजा अर्चना किया करते थे.
यहाँ पर नीलकंठ महादेव का बना मंदिर अपने २ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदा के लिए जाना जाता है. इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते. कर्नल टॉड [ इतिहासकार] मंदिर की इस शली को ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं. लेकिन अधिकांशतः विद्वान इससे सहमत नहीं हैं. यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान वेदी है, जो शिल्पशास्र के ज्ञाता महाराणा कुंभा ने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था. राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है. किले के सर्वोच्च भाग पर भव्य महल बने हुए हैं.
कुछ और चित्र देखीए-:
इस सुन्दर दुर्ग के स्मरणार्थ महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किये थे जिसपर इसका नाम अंकित हुआ करता था.
महाराणा कुंभा एक कला प्रेमी शासक थे.कला के प्रति उनके इस अनुराग को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग ने वर्ष २००६ से 'कुंभलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 'की शुरूआत की है.कुंभलगढ़ में गत वर्ष २००९ में यह महोत्सव २१ से २३ दिसम्बर तक चला.महोत्सव के दौरान दिन और रात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.इसमें तीनों दिन प्रात: ११ से अपरान्ह ३ बजे तक तीरंदाजी, पगड़ी बांधना, रस्साकस्सी, रंगोली और मांडणा बनाने की प्रतियोगिताओं के साथ ही राजस्थान के लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुईं.
और अधिक जानकारी के लिए आदरणीय श्री रतन सिंह शेखावत जी द्वारा इसी दुर्ग पर लिखा लेख यहाँ पढ़ सकते हैं |
above photo is not photo of rana kumbha that is maharaja ganga singh
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