सन २०१० में विश्व सांस्कृतिक निकाय यूनेस्को ने जयपुर के 18 वीं सदी के जंतर-मंतर को वर्ल्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया है.तब से ही यह राजस्थान की पहली व देश की २३ वीं सांस्कृतिक धरोहर बन गया है.यूँ तो राजस्थान का भरतपुर घना पक्षी अभयारण्य पहले से वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में है,परंतु वह प्राकृतिक हैरिटेज सूची में है.ज्ञात हो कि देश की अब तक २८ विश्व धरोहर हैं, जिनमें अब २३ सांस्कृतिक और ५ प्राकृतिक धरोहर हैं.
जंतर का अर्थ है यंत्र ओर मंतर शब्द का अर्थ यहाँ गणना से है.
पिछली पोस्ट में मैंने महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय के बारे में बताया था.उन्होंने १७२४ में हिंदू खगोलशास्त्र के आधार पर वेधशालाओं का निर्माण करवाया.जिन में दिल्ली की वेधशाला के बनने के १० वर्षों के पश्चात जयपुर की वेधशाला बनवाई. उज्जैन , बनारस और मथुरा में अपेक्षाकृत छोटी वेधशालाएं थीं.
वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उज्जैन के खगोलशास्त्रियों की मदद भी ली जो उस समय इस शास्त्र में श्रेष्ठ माने जाते थे.उज्जैन के पंडित जगन्नाथ का नाम इन्मी प्रमुख लिया जाता है.ऐसा समझा जाता है कि उज्जैन में अपने निवास के दौरान उन्होंने इस पर कार्य करना शुरू कर दिया था.
कहा जाता है कि उज्जैन में उन्होंने सब से पहले १७१७ ऐ.डी .में सम्राट यंत्र स्थापित किया था और दिल्ली में उसके बाद १७२४ में.
जयपुर के प्रसिद्ध हवामहल से भी दिखाई देने वाले इस स्थान के बारे में आईये कुछ बातें जानें-
जंतर का अर्थ है यंत्र ओर मंतर शब्द का अर्थ यहाँ गणना से है.
पिछली पोस्ट में मैंने महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय के बारे में बताया था.उन्होंने १७२४ में हिंदू खगोलशास्त्र के आधार पर वेधशालाओं का निर्माण करवाया.जिन में दिल्ली की वेधशाला के बनने के १० वर्षों के पश्चात जयपुर की वेधशाला बनवाई. उज्जैन , बनारस और मथुरा में अपेक्षाकृत छोटी वेधशालाएं थीं.
वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उज्जैन के खगोलशास्त्रियों की मदद भी ली जो उस समय इस शास्त्र में श्रेष्ठ माने जाते थे.उज्जैन के पंडित जगन्नाथ का नाम इन्मी प्रमुख लिया जाता है.ऐसा समझा जाता है कि उज्जैन में अपने निवास के दौरान उन्होंने इस पर कार्य करना शुरू कर दिया था.
कहा जाता है कि उज्जैन में उन्होंने सब से पहले १७१७ ऐ.डी .में सम्राट यंत्र स्थापित किया था और दिल्ली में उसके बाद १७२४ में.
जयपुर के प्रसिद्ध हवामहल से भी दिखाई देने वाले इस स्थान के बारे में आईये कुछ बातें जानें-
- १७२८ में कुछ यंत्रों से काम लेना शुरू कर दिया गया था.१७३४ में निर्माण कार्य पूरा हुआ .
- जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्बितीय द्वारा बनवाई वेधशालाओं में यह सब से बड़ी है.
- इसमें मुख्य रूप से बड़े १४ ज्यामितीय यंत्र हैं जो समय ,सूर्य,तारों की स्थिति,ग्रहण का समय,ग्रहों,नक्षत्रों की स्थिति , उल्का पिंडों की बदलती दशा,मौसम आदि जानकारियाँ मालूम की जा सकती हैं.
- कुछ यंत्रों का प्रयोग सूर्य की रोशनी में अध्ययन ले लिए किया जाता है तो कुछ का प्रयोग चाँद की रोशनी में रात को .
- सम्राट यंत्र सवाई जयसिंह के द्वारा खड़े किए गए यंत्रों में से एक है .इसकी ऊँचाई करीब 144 फुट है.इसका उपयोग वायु परीक्षण के लिए ही किया जाता है.
- सम्राट यंत्र के अतिरिक्त अन्य यंत्र जो स्वयं महाराज ने स्थापित किये वे हैं- जयप्रकाश और राम यंत्र.
- यहाँ स्थित विश्व की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी दो सेकंड तक की सटीक जानकारी देती है.
- बेशक ये सभी यंत्र खगोलीय घटनाओं की जानकारी देने में आज भी सक्षम हैं.
- जयपुर शहर ज्योतिष और खगोलीय अध्ययन का केंद्र माना जाता रहा है.आज भी इस वेधशाला में शोध छात्र,खगोल शास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य सूक्ष्म गणनाएँ करने आते हैं .
- इन यंत्रों को बनाने के लिए स्थानीय पत्थर और संगमरमर का प्रयोग किया गया है.
- विद्याधर भट्टाचार्य नमक के ब्राह्मिण शिल्पकार की सलाह से दिल्ली और जयपुर की वेधशालाओं का शिल्प तय किया गया.
- यह ज्योतिष और खगोल के संगम का उत्कृष्ट नमूना है.यह कई मायनो में अन्य से बेहतर है.ओर अभी तक इस का उपयोग किया जा रहा है.
- एक स्थान पर मैंने पढ़ा है कि ज्योतिषों के अनुसार इस वेधशाला का उपयोग सटीक ज्योतिषी गणना के लिए अगले तीन हज़ार वर्षों तक किया जा सकेगा .आज भी कई देशी-विदेशी पर्यटक ख़ास अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं .
नाड़ी वलय यंत्र उत्तरी गोला. | |
सम्राट यंत्र | सूर्य घडी |
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